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विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा। अपने आत्माको पाच परमेष्ठीरूप विचारे। हृदयस्थानपर आठ पत्तोंका क्मल विचारे । पाच पत्तोंपर क्रमसे णमो अरहताणं, णमो सिद्धाण, गमो आइरियाणं, णमो उवज्ञायाणं, णमो लोग सव्वसाहणं लिखा विचारे, शेष तीन पत्तोंपर सम्यक्ढर्शनाय नम., सम्यग्ज्ञानाय नम , मम्यक्चारित्राय नम लिखा विचारे । फिर एक एक पत्तेपर लिग्व हुए मंत्रका ध्यान करे व उसके अर्थका मनन करे।
(३) रूपस्थ व्यान--अरहंत भगवानका स्वरूप विचारे कि वे समवशरणमे वारह सभाओंके मध्यमे ध्यानस्थ विराजमान है। वे अनंतचतुष्टय सहित है, परमवीतराग है । अथवा किसी जिनेन्द्रकी ध्यानमय मूर्तिको विचार कर उसका ध्यान करे, फिर उसके द्वारा शुद्धात्मापर मनको लेजावे।
(४) रूपातीत ध्यान--एढकमसे पुरुषाकार अमूर्तीक सिद्ध बुद्ध शुद्धात्माका व्यान करना रूपातीत व्यान है। धर्म ध्यान चौथे गुणस्थानसे लेकर सातवें तक होता है। आठवेंसे शुक्लध्यान शुरू होता है। इसके भी चार भेद हैं। पहला शुक्लध्यान ग्यारहवें तक व वारहवेके प्रारम्भमे, दूसरा शुक्लध्यान बारहवेमे. तीसरा तेरहवेके अंतमे. चौथा शुक्लध्यान चौदहवें गुणस्थानमे होता है।
(१) पृथक्त्व वितर्क वीचार-पहला शुक्लध्यान है। यहां अवुद्धिपूर्वक तीन प्रकारका परिवर्तन होता है। (१) मन वचन कायमेसे किसी योगका (२) एक शब्दसे दूसरे शब्दका (३) एक ध्येय पदार्थसे दूसरे ध्येय पदार्थका। जैसे आत्म द्रव्यसे आत्माके किमी गुण या पर्यायका ।
(२) एकत्ववितर्क अवीचार-किसी एक योगके द्वारा किसी