________________
१९८]
विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा । स्माके गुण, ज्ञान, गाति आदि है । द्रव्यप्राण इन्द्रिय, वल, आयु. श्वासोछ्वास है, जिनका कथन किया जा चुका है।
शिष्य-तब सब जैनी एकता क्यों नहीं रखते है ? दिगम्बर व श्वेताबर ऐसे जुदे मालूम पडते है जैसे-हिंदू और मुसलमान |
शिक्षक-एकता न होनेका कारण यह है कि जैनोका ध्यान अधिकतर बाहरी क्रियाकाडपर है, जिसमे कुछ मतभेद है। परन्तु असली मोक्ष मार्गपर नहीं है । यदि असली मोक्ष मार्गपर हो तो कभी परस्पर अनमेल न हो, सब असली मोक्षमार्गको एक ही जाने । व्यवहारके तरीकोंपर मतभेद होनेपर भी उसी तरह प्रेम रमखें जैसे कपड़ोंके व भोजनपानके भीतर भेद होनेपर एक सभाके सभासद परस्पर एकता व मेलसे रहते है।
शिष्य-तब हरएक आम्नायके उपदेशक इधर जेनोका लक्ष्य क्यों नहीं दिलाते है।
शिक्षक-जो साधु, पण्डित, उपदेशक आदि है उनका भी अधिकतर लक्ष्य व्यवहार क्रियाकांडके ऊपर रहता है, वे भी बहुत कम असली जैनधर्मकी तरफ ध्यान देते है। यदि वे सच्चे जैनधर्मका अनुभव करें तो उनके परिणामोंमें साम्यता आजावे तब उनका उपदेश भी ऐसा ही हो।
शिष्य--इस समय जैनोंमे अपनी२ आम्नायके अनुसार बाहरी आचरण पालते हुए एकताकी बडी जरूरत है तब क्या इन विरकोंको. पण्डितोंको व उपदेशकोंको समझाया नहीं जासक्ता है ?
शिक्षक--यदि दिगंबर तथा श्वेताबर दोनोके परोपकारी विद्वान लेखक अध्यात्मिक साहित्य तैयार करें और साम्यभावसे सच्चे धर्मपर