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विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा ।
ज्ञानदर्शनस पन आत्मा चैको ध्रुवो मम ।
शेपा भावाच मे वह्या सर्व सयोगलक्षणाः || १४९ ॥
भा० - ज्ञान दर्शन सहित एक अविनाशी आत्मा ही मेरा है बाकी सर्व रागादि भाव मेरे नहीं है कर्म संयोग से उत्पन्न हुए ᄒ आत्मान स्त्रापयेन्नित्यं ज्ञानवीरेण चारुणा ।
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येन निर्मलतां याति जीवो जन्मान्तरेग्वपि ॥ ३१४ ॥ भा० - आत्माको सदा पवित्र ज्ञानरूपी जल्में स्नान कराओ जिससे यह जीव जन्म जन्म के पापोसे छूटकर निर्मल होजाता है । श्री नागसेन मुनि तत्वानुशासन मे कहते है
स्वाध्यायाद्ध्यानमध्यास्तां ध्यानात्स्वाध्यायमामनेत् । ध्यानस्वाध्याय संपत्त्या परमात्मा प्रकाशते ॥ ८१ ॥ भा०- स्वाध्याय करने २ ध्यानमे आजाओ । भ्यानमे छूटो तब शास्त्र मनन करो । ध्यान स्वाध्यायकी प्राप्ति ही परमात्माका पद प्रगट होजाता है ।
स्वयमिष्टं न च द्विष्ट किन्तूपेक्ष्यमिदं जगत् । नाऽहमेष्टा न च द्वेष्टा किन्तु स्वयमुपेक्षिता ॥ १५७ ॥ भा०- यह जगत है न इष्ट है न अनिष्ट है, किन्तु वैराग्यके योग्य है। मैं न रागी हूं, न द्वेपी हूं. किन्तु स्वयं वीतरागी हूं ऐसा भावै ।
आत्मायतं निराबाधमतीन्द्रियमनश्वरं ।
घातिकर्मक्षयोद्भूतं यत्तन्मोक्षसुखं विदुः ॥ २४२ ॥ भा०--स्वाधीन, बाधारहित, अतीन्द्रिय, अविनाशी जो मोक्ष सुख कहा गया है वह ज्ञानावरणादि घातिकमोंके क्षय से पढ़ा होता है ।