Book Title: Vidyarthi Jain Dharm Shiksha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Shitalprasad

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Page 286
________________ २६६] विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा । হক্কী জুম্ভহ্বার্থ । जैनधर्म और हिंदू दर्शन । शिष्य-हिंदुओके मुख्यर दर्शनोंका और जैनदर्शनका क्या साम्य है व क्या असाम्य है थोडासा बता दीजिये जिससे मुझे मुकाबला करनेपर सुभीता हो। शिक्षक-यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं संक्षेपसे बताता हूं और इस विवेचनमें डाक्टर शिवाजी गणेश पटवर्धन एम० वी० (होमियो) अमरावती (बरार) लिखित हिदुधर्म-मीमांसा ( छपी सन् १९२४ ) पुस्तकका सहारा लेकर कुछ कहता हूं(१) न्यायदर्शन न्यायदर्शनके प्रवर्तक गौतम ऋपि है । इनका यह मत है कि संसार दुःखमय है । इससे छूटनेका उपाय तत्वज्ञान है । जब रागद्वेष मोह नष्ट होजावेंगे तब मोक्ष होजायगी। कहा है-"दुःखजन्मप्रवृत्तिदोषमिथ्याज्ञानाना उत्तरोत्तरापाये तदनन्तरापायादपवर्ग: " (न्या० सू० १।१।२१)। इसकी व्याख्या यह है कि जब तत्वज्ञानसे मिथ्याज्ञान चला जाता है तब दोष मिट जाते हैं फिर _प्रवृत्ति मिटती है उससे जन्म मिटता है फिर दुःखोंका क्षय होनेसे ___ मोक्ष होजाती है। बारह प्रकारके पदार्थोका ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। (१) आत्मा, (२) शरीर, (३) इन्द्रिय, (४) इन्द्रियों के विषय, (५) बुद्धि, (६) मन, (७) प्रकृति, (८) दोष ( राग द्वेष मोह ), (९) पुनजन्म, (१०) कर्मफल, (११) दुःख, (१२)

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