Book Title: Vidyarthi Jain Dharm Shiksha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Shitalprasad

View full book text
Previous | Next

Page 293
________________ जैनधर्म और हिंदू दर्शन। [ २७३ (४) योगदर्शन योगदर्शनके प्रणेता महर्षि पाताजलि होगये है । यह साख्यदर्शनसे मिलता है । सांख्यके समान यह दर्शन भी २५ तत्व मानता है. केवल एक तत्व और मानता है वह तत्व है-एक पुरुष विशेष अर्थात ईश्वर । ईश्वरका स्वरूप है-- क्लेगकर्मविकाशयैरपरामृष्ट. पुरुषविशेष ईश्वरः । तच्च निरतिशयं सर्वज्ञवीजम् । स एव पूर्वेषामपि गुरु. कालेनानवच्छेदात् । (१।२४--२६ योगसूत्र ) ___ भा०-जो पुरुष विशेष क्लेश, कर्मविपाक और आशयके संपर्कसे शून्य है वह ईश्वर है। वह परम अनिशयरूप सर्वज्ञ है। वही सर्व ब्रह्मा आदिका गुरु हे, सदा काल रहता है । मोक्षका उपाय योग साधन बताया है। उसके आठ अंग हे " यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टां__गानि ।" (२-२९) (१) यम-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और परिग्रहत्याग। (२) नियम-शौच, सन्तोप, तप, स्वाध्याय और ईश्वर ध्यान। (३) आसन-पद्मासन, वीरासन आदि ८४ आसन, जिससे __ शरीर स्थिर रहे, कोई भी आसन । (४) प्राणायाम-श्वासके रोकनेका विधान । (५) प्रत्याहार-इन्द्रियोंका निरोध करना । (६) धारणा-एक जगह मनको रोकना । ७) ध्यान-चित्त निरोधका प्रवाह होना ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317