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विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा । भावार्थ-हेबरयू कहते है- बकरों व बछडोंके रक्तसे नहीं कितु अपने ही परिश्रमसे पवित्र स्थानमे वह गया है। पवित्र मुक्तिको उसने प्राप्ति कर लिया है । क्योकि यह संभव नहीं है कि बैलों और बकरोंका रुधिर पापोंको धोसकेगा।
(4) James ch 2-II For he that said-do not commit adultory, said also-donot hill Now if thou commit no adultory, yet if thou kill, thou art become a transgrassor of the las: 26 For as the body without the spint is dead, so faith without work is dead also
भावार्थ-जेम्स कहते है -उसने जैसे कहा है कि व्यभिचार न करो वैसे यह भी कहा है कि हिसा मत करो । जो कोई व्यभि___ चार न करे किंतु हिसा करे वह भी नियमका खण्डन करनेवाला
होगा। जिस तरह आत्माके विना शरीर मुरदा है, वैमे चारित्रके विना श्रद्धान मुरदा है।
शिष्य-गुरुजी ! तब तो यह जरूरी है कि ईसाई दुनियामे जैनधर्म फैलाया जावे । कर्तावाद तो वाइवलमे होगा ही।
शिक्षक-कर्तावाढ तो बहुत थोडे वाक्योंमे हे मुख्य नहीं है । मुख्य बात वाइबलकी यही है कि अपनेको शुद्धात्माके ध्यानसे शुद्ध करो, पवित्र करो, तथा अहिंसाको पालो, किसीको कष्ट देकर भोजनपान न करो। मास न खाओ, वास्तवमे जैनधर्मकी शिक्षाके प्रचारकी बहुत ही जरूरत है
पारसी धर्म। शिष्य-पारसियोंकी धर्मपुस्तकोंमे भी क्या कुछ समानता है ?
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