Book Title: Vidyarthi Jain Dharm Shiksha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Shitalprasad

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Page 300
________________ २८० ] विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा । and others wil be there They will enter into certain combinations and then will come the frist appearance of life. We shall have a protoplasm, first form of life, then it takes form of n vegetable. Then animals and lastly man A soul once become human cannot reincarnate in animal or vegetable forms ( 42 ) भा०- एक बहुत बड़ा जड पिंड हे जो बहुत ही उष्ण है । व करोडों मीलका उसका व्यास है । वह एक मेघ समूह महा शक्तियोंका समूह है । यह घूमने २ दूसरा समूह होकर फिर सूर्यका परिकर हो जाता है । फिर उमीमे हैड्रोजन वायु लोहा व दूसरे पदार्थ होजाते है । फिर कुछ मिलाप होने २ थम जीवनशक्ति प्रगट होजाती है। इसको प्रोटोप्लैडम कहते है । इसीसे वनस्पतिकाय बनती है । फिर उन्नति करते २ वही पशु, फिर वही मनुष्य होजाता है । 1 आत्मा मनुष्यकी दशा मे पशु या वनस्पतिकी अवस्थामे कभी नहीं गिरता है। यह एक विकाश वाढका सिद्धात है । जडसे चेतन बन जाता है । यह बात ऊपर लिखित छ दर्शनोंमे नही है । यह एक अनोखी बात है। जैन दर्शन से तो बिल्कुल मिस्ती नहीं है । जडसे जड ही बन सक्ता है, चेतन नहीं। तथा जीवोंकी उन्नति तथा अबनति दोनों बातें मभव हे । पशु भी मानव होसक्ता है तथा मानव भी अशुभ भावोंसे पाप वाधकर पशु होमक्ता है । शिक्षक - आर्यसमाजका बहुत प्रचार है । इसका जैन धर्मसे क्या अन्तर है ? आर्यसमाज | शिक्षक - यह दर्शन बहुत अंगमे नैयायिकसे मिलता है । यह ईश्वरको जगतका बनानेवाला कर्ता व सुख दुखका फलढाता

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