Book Title: Vidyarthi Jain Dharm Shiksha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Shitalprasad

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Page 305
________________ जैनधर्म और हिंदू दर्शन | [ २८५ वे उसको अपनी परिश्रम न करो उसको दूंगा, सदा के लिये प्याससे मुक्त होजायगा । किंतु वह मेरा दिया हुआ जल उसके भीतर नित्य जीवनके लिये एक जलका श्रांत होजाएगा ( सदा ही आनंद लाभ करेगा ) परमात्मा आत्मा एक समान हैं । जो उस परमात्माकी भक्ति करें आत्मामे और सत्यमें करे । उस आहारके लिये जो नष्ट हो जायगा किंतु ऐसे आहार ( आत्मानंद ) के लिए मिहनत करो जो नित्य जीवन में बना रहेगा। तुम सत्यको जब पहचानोगे तब सत्य तुम्धीन कर देगा । मैं और मेरे पिता परमात्मा एक समान है । ईसाने उससे कहा- मैं ही मार्ग हूं, सत्य हूं, हूं, क्या तू विश्वास नहीं करता है कि मै श्रद्धामे हूं और परमात्मा पिता मेरे में है । जीव (4) Cornithians-Ch, 3-16 Know ye not that ye are the temple of God and that the spirit of God dwelleth in you. 17. If any man defile the temple of God, him shall God destory, for the temple of God is holy which temple ye are. Ch 5-26-The last enemy that shall be destroyed is death. 50- Now this I say, brethren, that flesh and blood cannot inherit the kingdom of God. 51 -- Behold, we shall not all sleeps but we shall all be changed. मा० - कोरनिथियंस कहते है, क्या तुम नहीं जानते हो कि तुम ही परमात्मा मन्दिर हो । परमात्मा रूप ही आत्मा तुम्हारेमें है । यदि कोई आदमी इस परमात्मा के मंदिरको अपवित्र करेगा तो उसे परमात्मा नष्ट कर देगा ( वह अपवित्र होजायगा ) क्योंकि परमात्माका मंदिर पवित्र होता है और तुम ही वह मंदिर हो । अंतिम शत्रु मौत है जिसे नष्ट करना होगा । ऐ भाइयो, मैं

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