Book Title: Vidyarthi Jain Dharm Shiksha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Shitalprasad

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Page 299
________________ जैनधर्म ओर हिंद दर्शन। [२७९ (६-४)द्वैत इस द्वैतके प्रधान आचार्य मध्याचार्य है। इस दर्शनके अनुसार दो तत्व हे-एक स्वतंत्र दृमग अग्वतत्र स्वतंत्रमरवतंत्रं च द्विविध तत्वमिष्यते । स्वतंत्रो भगवानविष्णुर्निदोषोऽशेपसद्गुणः ॥ भा०-दो तत्वोमेसे स्वतंत्र तत्व भगवान विष्णु दोप रहित व सर्व गुण सहित है। अस्तंत्रतत्वमे भिन्नर अनेक जीव है और जड है । जगतमें जीव. जड व विष्णु तीनो पदार्थोको ये सत्य मानते है । नोट-हिदू-धर्ममीमासा पुरतकके आधाग्यो । हिंदूधर्मके ६ मुख्य दर्शनोंका कुछ हाल पाठकोंके ज्ञान हेतु बताया गया है। शिष्य--छः दर्शनोका कुछ हाल जाना। विशेष तो उनको पुस्तकोंके पढ़नेसे ज्ञात होगा । यह तो बताइये कि थियोसोफी भी क्या कोई हिदूमत है ? थियोसोफी। शिक्षक--यह हिंदु मतमे मान लिया गया है। परन्तु छः दर्शनोंसे मिरता नहीं है । क्योकि इसका मत है कि एक मूल जड पढार्थ है, उसीसे उन्नति करते २ जीव होता है। वह जीव उन्नति करने२ मानव होता है। अनुभव प्राप्त करके फिर वह मुक्त होजाता है। देखो पुस्तक-Frist Principles of Theosophy by C Jinaraydas M. A_1921 Adyer, Madras लिखा है The Great Nebula-It is a chastic mass of matter in its Intensely heated condition millians and mill.ans of miles in diameter. It is a Vague cloudy mass full of energy. It revolves into another Nebula. Then solar system, then hydrozen, iron

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