Book Title: Vidyarthi Jain Dharm Shiksha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Shitalprasad

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Page 288
________________ - २६८] विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। अनच्छिन्नसद्भावं वस्तु यद्देशकालतः । तन्नित्यं विभु चेच्छन्तीत्यात्माना विभु नित्यतेति ॥ (सर्वदर्शनसंग्रह पृ० १३९) मा०-किसी देश व कालमे आत्मा निरोध रूप नहीं है । आत्मा व्यापक है और नित्य है। (२) वैशेपिक दर्शन वैशेषिक दर्शन सूत्र है। इसके कता महर्षि कणाद होगए ह। यह दर्शन भी संसारको दुःखमय मानता है और मोक्षकी प्रामि तत्वज्ञानसे कहता है । इस दर्शनमे द्रव्य नौ माने है (१) पृथ्वी (२) जल (३) अमि (४) वायु (५) आकाम (६) काल (७) दिशा (८) आत्मा (९) मन । पृथ्वी. जल, तेज, वायु इनके परमाणु भिन्नर होते है। इसलिये ये चारों परमाणुओंकी अपेक्षा नित्य है परन्तु स्कंधके वननेकी अपेक्षा अनित्य है। शेष पाच द्रव्य भी नित्य है, मनको अणु मानता है। आत्मा व्यापक है परन्तु अनेक है । हर गरीरमें मिन्न२ आत्मा है । आत्मा ज्ञानका आश्रय है । जैनदर्शनमें पृथ्वी आदिके भिन्नर परमाणु नहीं माने गए है। किंतु एक पुद्गल द्रव्य परमाणु रूप माना गया है, उन परमाणुओंके मिलनेसे व नानाप्रकार परिणमन होनेसे पृथ्वी जल आदिके स्कंध बनते है । ___ न्यायदर्शनकी तरह यह भी ईश्वरको जगतके बननेमे निमित्त कारण व कर्मके फलका दाता मानता है। यद्यपि न्याय व वैशेषिक दोनों जैनदर्शनके समान, यह मानते है कि यह आत्मा स्वयं अपने

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