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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। अहंकार, (४) अहंकारसे उत्पन्न पाच तन्मात्रा और ग्यारह इंद्रिया१६ (५) पाच तन्मात्रासे उत्पन्न पंचमहाभूत, (६) पुम्प=२५ तत्व।
पाच तन्मात्रा--शब्द, रस, रूप, गंध, स्पर्ग । __ ग्यारह इद्रिया--स्पर्शनादि पाच ज्ञानेन्द्रिय, पाच कर्मेन्द्रिय जैसे हाथ, पाव, वाक्, लिंग, गुदा।
पंचमहाभूत- पृथ्वी, जल, तेन. वायु, आकाश ।
मूल प्रकृतिका लक्षण नीचे प्रकार हैअशब्दमस्पर्शमरूपमद्वयं तथा च नित्यं रसगजितम् । अनादिमध्यं महतः परं ध्रुवं प्रधानमेतत् प्रवदन्ति मूरयः ।।
भा०-प्रकृति शब्द रहित, स्पर्श रहित, स्प रहित, अविनाशी तथा नित्य, रस रहित, गंध रहित, अनादि मध्य रहित, महान तत्वसे परे, ध्रुव इसीसे आचार्य प्रधान कहते है--- ___ जैनियोंके माने हुये पुद्गल द्रव्यसे प्रकृतिका मिलान नहीं होता है। पुद्गल स्पर्श, रस, गंध, वर्णमय है । प्रकृति इन गुणोंसे " रहित है तौभी प्रकृतिसे स्पर्शादि व, पृथ्वी आदि बन जाते है, यही बात एक जैनदर्शनके ज्ञाताके समझमे नहीं आती है क्योंकि उपादान कारणके समान कार्य होता है, जब उपादान या मूल कारणमें ‘स्पर्शादि गुण नहीं तब उससे स्पर्शादि गुणवाली वस्तु कैसे उपजेगी? विद्वानोके लिये विचारने योग्य है। पुरुषका लक्षण है
पुरुषोऽनादिः सूक्ष्मः सर्वगतश्चेतनाऽगुणो। ___दृष्टा भोक्ता अकर्ता क्षेत्रविदमलोऽपसवधर्मीति ॥