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जैन और बौद्ध धर्म ।
[२२५ जैन मुनिका तप भी पाला, ऐसा वैद्ध ग्रन्थोंमे प्रगट है। पिथा गुरु तब यहा मुनिपदमें २०.-२१ वर्षकी आयुमे होगे, यदि जन्म ५९० वर्ष पूर्व माना जावे । इसलिये पिहिताश्रव मुनि व पिथा गुरुका सम्बन्ध बहुत कुछ मिल जाता है। पिथा गुरु अल्पवयहीमें भारतमे आप होगे ऐसा झलकता है। जब ३५ वर्षाके गौतम बुद्ध थे तब श्री महावीर भगवान ३१ वर्षके थे । और तप अवस्थामें थे क्योकि ३० वर्षकी आयुमें दीक्षा ली थी। और १२ वर्षतक तप साधा फिर उपदेश शुरू किया। इससे सिद्ध है कि गौतम बुद्धका उपदेश श्री महावीरस्वामीके उपदेशसे १२ वर्ष पूर्व शुरू होगया था। तब गौतम बुद्ध ४७ वर्षके थे।
शिप्य-यों पाली ग्रन्थोंमे यह कथन मिलता है कि गौतम बुद्धन जैन मुनिकी तपस्या घर छोड़नेके वाद पाली थी !
शिक्षक- मज्झिमनिकाय पाली ग्राथ के बारहवें महासीह नाद, मुत्तमे नीचे लिखे वाक्योंसे दिगंबर जैन मुनि होना सिद्ध है।
"अचेलको होमि हत्थापले खनो ..नाभिहतं न उद्दिस्सकत न निमत्तंनं सादियामि. नगमनिया न पायमानया न पय मक्षिका संड संड चारिनी। न मच्छे न मांसं न सुरं न भेयिं न पुसोढकं पियामि । सो एकागारिको वा हामि एकालोपिका, द्वागारिको होमि, द्वालोपिको, सत्तागारिको वा होमि सत्तालोपिको, एकाहपि आहारं आहारेमि, द्वीहिकंपि आहारं आहारेमि, सत्ताहिकं पि आहारं आहारेमि। इति एयरूपं अद्धमासिकंपि परिमायभन भोजनानुयोगं अनुयुत्तो विहरामि. केस्समस्सुलोचकोपिहोमि याव उदुबिन्दुम्हि पि मे दया पच्चुपहिताहोति माहं खुद्दके पाणे पि समगते संवाते अप्पादेस्संति ।