Book Title: Vidyarthi Jain Dharm Shiksha
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Shitalprasad

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Page 264
________________ २४४] विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। हेतुओंको गूंथकर कहेंगे। मेरे न हुए कथनोंको मानके यह कहेंगे कि भगवानने मास भोजनकी आज्ञा दी है, स्वयं मास भोजन किया है व खाने योग्य भोजनोंमे बताया है। हे महामते ! मैने किसी भी सूत्रमे मास खानेकी आज्ञा नहीं दी है न इसे भक्ष्य पदार्थों में कहा है। शिष्य-यह ग्रन्थ कितना पुराना है व कहां मिलता है ? शिक्षक-यह ग्रन्थ पुराना है, इसकी संस्कृतसे चीनी भाषामें टीका मालवाके गुणभद्रने सन् ४४३ में की थी। इसको ओटनी यूनि० क्युटो ( Orani Uuver ny Kyoto Jpan ) ने संस्कृत मूल सन् १९२३ मे छपाया है। सम्पादक Bunyin Nanjid M A है। यदि बौद्ध देशोंमे मांस मत्स्यका आहार निकल जाये और वे पाली ग्रंथोंके अनुसार चलने लगे तो श्वेताम्बर जैनोंमे और बौद्धोंमे कोई अन्तर नहीं दिखलाई पडेगा। दोनों साधु वसा रखते, वस्त्र सहित प्रतिमा बनाते, उसी प्रकार भिक्षासे एकत्र कर भोजन करते है। जैनोपदेशकोका वर्तव्य है कि बौद्ध देशोंमे जाकर उनहींक ग्रन्थोंसे उनको मास मछली निषेधका उपदेश देकर इसका प्रचार बन्द करावें । हमने जैन बौद्ध तत्वज्ञान हिन्दीमे और Jainism and Budhiom इंग्रेजीमे छपवाई है। इसको पढ़नेसे आपको और भी अधिक जैन और बौद्धकी साम्यता मालूम पडेगी। शिष्य-कृपा करके अब यह बताइये कि हिंदू धर्म और जैनधर्ममें क्या साम्यता है व क्या मतभेद है ?

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