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विद्यार्थी जनधर्म शिक्षा। हे जैसे जैनियोमे होती है । ये लोग केवल वस्त्रका चिन्ह दिवाने है. आगे पुष्प, दीप व धूपसे पूजन करने ह । दण्टवत् करके जनोंकी तरह नमस्कार करने हे । बहुया ये पढ़ने है ' बुद्धं सरण गच्छामि, धम्म शरण गच्छामि, मघ गणं गच्छामि ।" वर्मा, सीलोनमे इनके विशाल मदिरामे छडी २ अवगाहनाकी पशासन, कायोत्सर्ग व लेटे निर्वाण आमनकी मूर्तिये है । न बर्मा) मे एक मूर्ति निर्वाणकी १८१ फुट लम्बी है । ४५ फुटनककी बहुतमी मूर्तिया रंगूनमे हे जो वडी मुन्दर पद्मासन है । केवल हाप कभी
हे। सीलोनकी एक पहाडीपर गुफाके भीतर ध्यानमय बडी मूर्तिया है । ये लोग नगे पैर विनयमे यात्रा करते है।
शिष्य-तब तो जैन और बौद्धका बडा भारी घनिष्ट संबंध है।
शिक्षक-दोनोंका तत्वज्ञान एकसा ही है । जैनोको उचित है कि बौद्धोंके ग्रन्थ देखें तथा बौद्धोंको उचित है कि जनोंके ग्रन्थ देखें ।
शिष्य-परन्तु मैने यह सुना है कि बौद्ध साधु व गृहस्थ दोनों मासाहारी है, तब अहिंसाका तो कुछ पालन हुआ ही नहीं।
शिक्षक-सव तो नहीं है, बहुतसे साधु व गृहस्थ माम मछली __ नहीं खाते है, बहुतसे खाते भी है । जो खाते है उनको यह मिथ्या
श्रद्धान है कि मास खरीदनेसे हिसाका दोष नहीं लगता है जबतक मासके लिये पशु घात किया न हो, कराया न हो, व पशु घात करनेकी अनुमोदना न की हो । इसीतरह साधुको जो भिक्षामे मिल जावेगा वह लेकर खालेगा। यदि वह मास मागे व यह भाव करे कि मांस मिले व किसी प्रकारकी मासकी प्रेरणा करे जिससे पशु घात हो तब तो उसको हिंप का दोप लगेगा, नहीं तो साधुको मास मात्र