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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा ।
" अयमेव अरियो अटुंगिको मग्गो आसवनिशेधगामिनी पटिपदा सेय्यचिद- सम्मादिट्ठि, सम्माकप्पो, सम्मावाचा, सम्मकम्मंतो, -सम्माआजीवो, सम्मावायामो, सम्मामति, सम्मा समाधि । "
भा०-हे आर्यो । आसव के रोकनेका उपाय यह आठ प्रकारका -मार्ग है । (१) सम्यष्टि (२) सम्यक् मंकल्प ( ३ ) सम्यकवचन, (४) सम्यक्कर्म, (५) सम्यक् आजीविका, (६) सम्यक् व्यायाम. (७) सम्यक् स्मृति, (८) सम्यक् समाधि ।
जैनों द्वारा माना हुआ सम्यक्दर्शन सम्यक् दृष्टिके साथ सम्यक्ज्ञान सम्यक् संकल्प के साथ व शेष छहों सम्यक् चारित्रके साथ मिल जाते है ।
वात एक ही है। चाहे रत्नत्रय मोक्षमार्ग कहो या अष्टाग मोक्षमार्ग कहो । जब निर्वाण स्वरूप आत्मावर श्रद्धान लाया जायगा उसीका ज्ञान होगा, व उसीकी तरफ चेष्टा या व्यायाम होगा । उसीका ही स्मरण होगा, उसीको समाधिभावमे घ्याया जायगा तब ही मोक्षमार्ग होगा । व्यवहारमे वर्तने हुए वचनयोग्य, कायकी क्रिया योग्य व भोजन शुद्ध होजाना चाहिये । जैन और बौद्ध दोनांका एक ही कहना है । जैसे जैनोंमे आत्मध्यानको भेद विज्ञानके द्वारा करके मोक्षका साधन बताया है ऐसा ही बौद्ध ग्रंथोंमे है ।
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मज्झिमनिकाय (2) महामालुम्बसुत्तं चतुत्थं (६४) ' सोयदेव तत्थ होति वेदानागतं, संज्ञागतं, संखारागतं विज्ञानागतं ते धम्मे अनि तो दुक्खतो रोगतो गडतो सल्लतो अप्पतो आवाधतो परतो पलोकतो सुन्नतो अनत्तत्तो समनुपस्सति, सोतेहि धम्मेहि चिंत्त परियायेति, सोतेहि धम्मेहि चिंतं पटिवायेत्वा अमताय धातुया चिंत्तं