________________
१९६]
विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा इशावां अध्याय।
जैनोंके भेद। शिष्य-कृपा करके यह वताइये कि जैनोंमें भेद क्यों है ? क इनके सिद्धातमे क्या अन्तर है ?
शिक्षक-जैनोंमे व्यवहार क्रिया आचरणकी अपेक्षा ही दिगंबर श्वेतांबर आदि भेद है। यदि मूल सिद्धांतको लिया जाये तो सबका एक ही मत है । जैन धर्मका तत्व यह है कि आत्माको स्वाधीन किया जाये, शुद्ध किया जाये । इसके साथ जो कर्मोका बंध है वह दूर कर दिया जावे । आत्माके शुद्ध भावको मोक्ष सत्र जैनी मानते है । तथा मोक्षका निश्चय उपाय आत्माके ध्यानको सब मानते है । निश्चयसे आत्माके शुद्ध स्वरूपका ध्यान ही मोक्ष मार्ग है व शुद्ध भाव ही मोक्ष है । सात तत्व, नौ पदार्थ. छ द्रव्य, पांच अस्तिकाय, चौदह गुणस्थान, आदिमे कोई मतभेद नहीं है । अंतरंग स्वरूप सब एकसा मानते है। छ द्रव्योमे कोई २ श्वेतावर जैनाचार्य निश्चय काल द्रव्यको नहीं मानते है, केवल व्यवहार कालको मानने है, कोई श्वेताबराचार्य काल द्रव्यको मानते है । यह एक बहुत सूक्ष्म भेद है । कर्मोके बन्ध, उदय, सत्तामे एकमतपना है। कोई भी जैनी चाहे दिगम्बर हो या श्वेताम्बर हो वीतराग भावको ही धर्म मानेगा । राग, द्वेष मोहको संसार मानेगा। जैसा श्री कुंद्रकुंदाचार्यने समयसारमें कहा है । इसमे कोई मतभेद नहीं है।