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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा । प्रमाण इस बातका नहीं मिला है कि श्री महावीरस्वामीके पहले या उनके समयमे जैन साधु सवस्त्र थे।
शिष्य--इस कालमे वस्त्र रहित साधु होना बहुत कठिन मालम होता है, क्या इसीलिये नो श्वेताम्बरोंने सवस्त्र माधुका मार्ग नहीं चलाया ?
शिक्षक--यदि प्रतिमाओके द्वारा धीरे२ वस्त्र त्यागका अभ्यास किया जावे तो सावुपद नग्नावस्थामे ठीक पल सक्ता है, विना अभ्यासके तो वास्तवमे कठिन काम है। शरदी, गमी आदि सहना व लज्जा जीतना बहुत ही दुष्कर कार्य है, परन्तु अभ्याससे सरल है।
शिष्य-क्या श्वेताम्बर साधुकी क्रियाएं दिगम्बरोंकी किसी' प्रतिमासे मिल जाती है ?
शिक्षक-यदि हम क्षुल्लफोका मिलान करें तो, बहुत अंगमें मेल बैठ जाता है। दिगम्बर जैन शास्त्रोंमे अनेक घरोंसे भोजन पात्रमें एकत्र करके क्षुल्लकके लिये भोजन करनेका विधान है इसीको श्वेताम्बर साधु पालते है।
शिष्य-क्षुल्लक गन्द म्यारहवीं प्रतिमाधारीको क्यों दिया गया है ?
शिक्षक-क्षुल्लक छोटेको कहते है, वास्तवमें वे छोटे साधु ही है। वे भी साधुवत् व्यानादि करते है, भिक्षावृत्तिसे भोजन करते हैं, मोरपिच्छिका रखते है। ___ शिष्य-तब फिर दिगम्बर श्वेताम्बरोको वस्त्र रखने न रखनेपर मन मुटाव न रखना चाहिये । श्वेताम्बर शास्त्रमें उत्तम जिनकल्पी अचेल वस्त्र रहित कहे गए है। दिगम्बर साधुओंको इस दृष्टिसे श्वेताम्बरोंको देखना चाहिये तथा दिगम्बरोंको उचित है कि