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श्रावनेका आचार
[१५ imes स्वाध्यायधर्मचर्चा, पूजनादिमें बिताना चाहिये। उपवास करनेसे शरीर शुद्ध होता है. रोगोंके कारण मिटते है,- वचन व मन शुद्ध होता है, आत्मा पवित्र होता है। उत्कृष्ट प्रोषध सप्तमी व नौमीको एकासन, अष्टमीको उपवास करे, १६ पहर या ४८ घंटे धर्मध्यानमें लगावे। मध्यम प्रोषध सप्तमीकी सध्याये नौमीके प्रातःकालंतक १२ पहर धर्मध्यानमें गमावे। जघन्यं प्रोषध अष्टमीके ८ पहर धर्मध्यानमें वितावे। भोजन त्याग तो सप्तमीको भी रहेगा। दूसरी विधि मध्यम या जघन्यकी यह है कि १६ पहर धर्मसाधन करे । आवश्यक्तानुसार जल लेवे यह मध्यम है । जलके सिवाय अष्ठमीको एक भुक्त भी करले, परन्तु १६पहर धर्मध्यान करे । अभ्यास करनेवाला अनुप्रवास भी कर सक्ता है अर्थात १२ ,पहरके उपवासमें बीचमें एक दफे , जल भी लेवे अथवा १२ पहरके मध्यमें एकासन कर सक्ता है । शक्तिके अनुसार इस शिक्षाबतको पालना चाहिये।
(३) भोगोपभोग परिमाण-भोग और उपभोगके पदार्थोका आवश्यक्तानुसार रोज भवरे २४ घटेके लिये प्रमाण कर लेना। जो एक ही दफे काममें आम वह भोग है। जैसे भोजन, सुगंध । जो वास्र काममें आसके यो उपभोग है। पांचो इन्द्रियोंकी इच्छाओंको वा करनेके लिये अनावश्यक भांग और उपभोग पदार्थों का त्याग करदेश नी । प्रकार सत्रह १७ नियम लेनेसे यह शिक्षाबत मलेप्रकार पल जाता है
१ भोजन-भोजन के दफे करूंगा, २ पान-भोजनके सिवाय ! पानी के दफे पीऊँगा; ३ पटरस-दध, दही, घी, तेल, निमक, मीठा इनमेंसे अमुकर रसोंका त्याग, करता हूं, ४ कुंकुमादि विलेपन, चंदन तेलादि, लगाऊंगा या नहीं, ५ पुष्प-फूल सूंधूंगा- या: नहीं,