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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। खनी चाहिये । (१) आठ 'मद जाति (नाना मामा आदि). कुल ( पिता आदि), रूप. बल. धन, अधिकार. विद्या. 'तप इन आट बातोका घमण्ड करना आठ मद दोष है । (२ तीन मूढताएं.. मूर्खतासे देखादेखी रागीद्वपी देव पृजना देव मृढता है। परिग्रहधारी गुरु मानना पाखडी मृढता है। लौकिक क्रियाओंको धर्म माननो लोक्मूढ़ता है । (३) छह अनायंतन कुदेव. कुंगुरू. कुंधर्म और इनके तीन सेवकाकी सी संगति करनी जिससे श्रद्धानमें कमी आजाय । । ४) आठ शकादि दोप- इनके विरोधी नीचे लिखे आठ गुणोंको या सम्यक्तके अंगोंको पालना ।
(२) निःशकते अग तत्वोंमे शंका न रखकर 'निर्भय होकर धर्म पालना, (२) नि कांक्षित अग -इन्द्रिय भोगोंमे मुखी श्रद्धान रखना, (३) निविचिकित्सित अग-रोगी दुखी दलिद्री आदिस घृणा न करनी, (१) अमृढदृष्टि अंग- मृढ़ताईसे देखादेखी कोई धर्मक्रिया न करनी, (५) उपवहन या उपगृहन अंग -अपने आत्मीक गुणों को बढ़ाना । परके दोषोको प्रकाश न करके उसके छुड़ानेका उद्यम करना, (६) स्थितिकरण अंग- अपनेको व दूसरोंको धर्ममें स्थिर करना, (७) वात्सल्य अग--सर्व सहधर्मी भाई बहनोंमे गौवसके समान प्रेम रखना, (८) प्रभावना अंग- जिस तरह बनें अज्ञान अंधकारको मेटकर सच्चे तत्वज्ञानका प्रचार करना । सम्यक्ती इन आठ अंगोंको पालकर उनके विरोधी दोषोंसे बचता है । इस तरह पच्चीस दोपोंको बचाता है। यह सम्यक्ती देवपूजा, गुरुभक्ति, शास्त्रस्वाध्याय, संयम, सामायिक (तप), दान इन छ. नित्य कर्मोंका रोज अभ्यास करता है । तथा आठ गुणोंको पालता है। १--मदिराका