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विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा। मस्तक झुकाकर लगानेको गिरोननि कहते है। फिर खडे २ दाहने हाथकी तरफ मुड़ जावे । इवर भी नौदफे णमोकार मंत्र पढ़कर तीन आवर्त व एक शिरोनति करे। ऐसा ही दुसरी दो दिगाओंमें करके पूर्व या उत्तरको मुख करके पद्मासन या अर्द्धपद्मासन वैट जांव। पहले कोई सामायिक पाठ पढ़े फिर जप करे. फिर कुछ ध्यान करे। अंतमे फिर खडा होकर नौदफे णमोकार मंत्र पढ़कर दंडवत् करके सामायिक पूर्ण करे। चारों तरफ घूमकर तीन आवर्न व एक शिगेनति करनेका प्रयोजन यह है कि हरएक दिगामें जो तीर्थ स्थान मदिर मुनि आदि हों उनको नमन किया जावे। अभ्यास करने वाला एक या दो या तीन दफे व जितने समयके लिये कर नके सामायिक करे। उस समय सर्व प्राणी मात्रपर समता भाव रखले, अपने दोषका पछतावा करे व क्षमाभाव ग्वं । इस गाथाका भाव विचार
"खम्मामि सव्व जीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे । मिची मे सब भूदेसु वरं मज्झं न केणवि ।"
मैं सर्व जीवापर क्षमा करता है, सर्व जीव मुझपर क्षमा करे । मेरी मैत्री सर्व प्राणियोंमे हो । मेग वैर किसीसे भी न रहे ।
(२) प्रोपधोपवास-प्रोषव पर्वको कहते है । महीने में चार पर्व दिन प्रसिद्ध है-दो अष्टमी व दो चोढस । इन चार दिनोंमें चार प्रकार आहार छोड़कर उपवास करना चाहिये । अपना समय धर्मध्यानमे विताना चाहिये । धर्मस्थानमे बैठकर समय सामायिक,
सामायिक पाठ श्री अमितगति भाचार्य कृत भाषा छन्द व भाषा ठीका सहित ) में दिजैन पुस्तकालय-सुरतसे मिलता है।