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श्रावकोंका आचार |
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कहना । क्योंकि क्रोध, लोभ, भय व हास्यके वशीभूत होकर झूठ बोला जाता है, इससे इनके वेगसे बचना और यह ध्यान मे रखना उचित है कि कोई वचन जैन सिद्धातके प्रतिकूल न बोला जावे ।
अचौर्य व्रतकी ५ भावनाएं - १ शून्यागार - पर्वत, गुफा चनादि शून्य स्थानमें रहना, २ विमोचितावास - दूसरोंमे छोड़े हुए ऊजड मकान में रहना, ३ परोपरोधाकरण - दूसरोंको आने हुए नना न करना, या जहां दूसरे मना करें वहा न रहना, ४ भैक्षशुद्धिशास्त्रों के अनुसार भिक्षा या भोजन करना, अतिचार लगाकर भोजन -न करना, ५ सद्धर्माचिसंवाद - अपने सावर्मी जीवोंके साथ मेरा तेरा करके झगड़ा न करना । धार्मिक पढार्थको अपना न मान बैठना, किसी तरह दूसरे के द्वारा चोगेका दोप न लगे इस बातकी सम्हाल इन भावनाओमे अच्छी तरह होजाती है ।
ब्रह्मचर्य व्रतकी पांच भावनाएं ? - स्त्री रागकथा श्रवण त्यागत्रियोंमें राग बढ़ानेवाली कथा वार्ता करनेका व सुननेका त्याग । २ -- तन्मनोहरांग निरीक्षण व्याग उन खियाके मनोहर अंगोंके देखनेका त्याग | ३ - पूर्वरतानुस्तरण या पहले भोगोको याद करनेका त्याग । ४ -- वृप्यष्टग्स त्याग - कानोई पक इष्ट रस खानेका त्याग | ५ -- स्वशरीर संस्कार त्याग - अपने को शृंगारित करनेका त्याग | जो स्त्री व पुरुष पूर्ण ब्रह्मचर्य पाले उनको इन बातोंकी सम्हाल बहुत जरुरी है । जवनक निमित्तांको नचाया न जायगा ब्रह्मचर्यको पालना दुर्लभ है। श्रावकों को स्त्री के सिवाय परस्त्रियों के सम्बन्धमें इन भावनाओको विचारना चाहिये । भोग्नपान सादा शुद्ध संयममे रखने" वाला पौष्टिक करना चाहिये तथा वस्त्र भेप शातभाव प्रदर्शक व