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विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा ।
कमानेका त्याग + रना अचौर्य अणुव्रत है। जो वस्तुएं सबके काममें
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आसकती है व जिसके लिये राज्यकी व अन्य किसीकी मनाई नहीं
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है उसको बिना ढिये यह श्रावक लेसक्ता है।
जैसे नही, कृपका
यदि मनाई हो तो
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पानी, मिट्टी, जंगलकी लकड़ी, बनके फलादि विना आज्ञाके न लेनी चाहिये। यह श्रावक न्यायके ऊपर चल करके परिणामोंको चोरीके भावसे बचाएगा ।
अपनी विवाहिता स्त्री संतोष रखके परस्त्री या वेश्या आदिका
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त्याग करना ब्रह्मचर्य अणुव्रत है। अपनी स्त्री भी नियमित काम
भोग करना जिससे शरीर निर्बल न हो, तथा धर्म, अर्थ, काम
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पुरुषार्थके साधनमें विघ्न न पड़े। बलवान योग्य सन्तानके भावसे स्त्री प्रसंग करना । मित्रवत् स्त्रीके साथ रहकर दोनों मिलकर धर्म साधन व परोपकार करना. एक दूसरेकी उन्नति चाइना व परस्पर सहाई होना ।
आजन्मके लिये तृष्णाके घटानेके लिये अपनी भावना के अनुसार सम्पत्तिका नियम कर लेना कि इतनी संपत्ति होजानेपर हम अधिक नहीं कमायेंगे - उसीके भीतर भीतर ही रखेंगे । जैसे- कोई दस हजार, पचास हजार, एक लाख, दस लाख, एक करोड़, दस करोड़ या अधिकका प्रमाण करले । फिर इस संपत्तिको तफसीलवार नीचे लिग्वे १० प्रकार परिग्रहका प्रमाण करके बांट लेवें ।
१ क्षेत्र - खेत कितना, २ वास्तु- मकान कितने, ३ हिरण्यचाढी कितनी या कितना रुपया, ४ सुवर्ण- सोना जवाहरात. ५ धन - गाय, भैंस, घोड़ आदि, ६ धान्य- अनाज इतने मनसे अधिक
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नहीं या एक महीने के खर्चके लायक, ७ दासी - इतनीसे अधिक