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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। '..शिष्य-कृपा करके आवकोंको कितना अंग हन व्रताको कमसे कम पालना चाहिये सो बताइये । . ....
शिक्षक-मै श्रावकोंकी अपेक्षा टन पाच. अणुवतीको व उनके रक्षक-मात गीलोको बताता हूं, आप समय लें। __ . पांच अणुवत-एक साधारण श्रावक अहिमा व्रतकी भावना रखता हुआ-प्रथम मंकल्पी हिंसाको मन वचन कायमे त्यागता है। आरम्भी हिंसाको त्यागका प्रयत्न अपनी अनरंग इच्छाके अनुमार करता है जिससे लौकिक व्यवहारमे हानि न आवे उस तरह आरंभादि कार्य गृहस्थी करता है।
संकल्पी हिंसा-वह है जो हिसाके संकल्प या दगदेमे की नावे और वह व्यर्थ ही हो । जैसे धर्मके नाममे पशुओंकी बलि चढाना. शिकार खेलके मृगादिको माग्ना, मांस के लिये पशु घात करना या कराना, मौजशौकके लिये हिमा कगना । __ आरंभी हिंसा-प्रयोनन भृत हिंसा है। उसके नीन भेढ हे -
(१) उद्यमी हिंसा-जो गृहस्थ योग्य छ आजीविकाके साधनोंमे की जाती है-(१) असिकर्म-सिपाहीका काम. (२) मसिकर्मलिखनेका काम, (३) कृषिकर्म-ग्वनी, (४) वाणिज्य व्यापार, (५), शिल्प-नाना प्रकारके उद्योग, (६) विद्यार्म-गाना, बजाना, चित्रकला आदि ।
(२) गृहारंभी हिंसा-जो गृहके कामकाजमे, भोजनपानके प्रबंधमें, मकान बनानेमे, कुआ खुदानेमे, बाग लगाने आदिमें कीजाती है।
(३) विरोधी हिंसा-कोई अन्यायी या दुष्ट पुरुष अपना सामना करे, अपनी जान लेना चाहे, अपना माल छीनना चाहे,