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संवर, निर्जरा और मोक्ष ।
[१६७ सोनेकी (१२) गाली सुननेकी (१३) वध या मारे जानेकी (१४), याचना (भोजनका अलाभ होनेपर भी मागनेका भाव न करना) (१५) अलाभ (में खेद न करना) (१६) रोग (१७) तृण स्पर्श (झाडियोंका कटिन स्पर्श) (१८) मल शरीरको मैला देखकर ग्लानि न लाना) (१९) आढरे निरादर (२०) ज्ञानका मद (२१) अज्ञान (पर खेद न करना) (२२) अदर्शन (विशेप लाभ तपादिसे न होनेपर श्रद्धान न बिगाडना)
(६) चारित्र पांच प्रकार है-(१) सामायिक--समताभावमें लीन रहना (२) छेदोपस्थापना--सामायिकके भावसे चलित होनेपर फिर अपनेको सामायिकमें स्थापित करना (३) परिहारविशुद्धिजहां प्राणियोंकी हिंसा विशेषरूपसे बचाई जावे। (४) सूक्ष्मसांपरायदेसवें गुणस्थानमें होनेवाला चारित्र (५) यथाख्यात-आदर्श वीतरागता जो ११वें गुणस्थानसे सिद्धों तक पाई जाती है। इस चारित्रसे विशेष कर्मोका संवर होता है।
(७) वारह प्रकार तप-छ: बाहरी तप हैं जो दूसरोंको प्रगट हों। (१) अनशन-रागको दूर करनेके लिये खाद्य, स्वाद्य, लेह्य, पेय चार प्रकार आहार त्यागकर उपवास करना । (२) अवमोदर्य-प्रमादके विजयके लिये भूखसे कम खाना। (३) वृत्तिपरिसंख्यानभिक्षाको जाते हुए एक दो चार गृह जानेकी व अन्य प्रतिज्ञा देश कालके अनुसार लेना जिससे गहस्थोंको विशेष आरम्भ न करना पड़े, प्रतिज्ञा पूर्ण होनेपर आहार लेना । (४) रसपरित्याग--धी, दूध, दही, तेल, मीठा, निमक इन छ: रसोंमेसे सबका या कुछका त्यागः, करना । (५) विविक्त शय्यासन-एकांतमें शयनासन करना।