________________
आस्रव और बंध तत्व
[१५९ किसी अच्छी गाडीपर जारहा है । मार्गमे गाडी उलटनेसे चोट लग जाती है, यहा तीव्र असाताका उदय समझना चाहिये। या कोई मानव किमी गरीब कुटुम्बमे पैदा हुआ और वह कुछ उम्र बीतनेपर किसी धनवानके घर गोद चला जाता है और धनवान होजाता है। उस समय उसके नीत्र पुण्य का उदय समझना चाहिये ।
शिष्य- मैं इस बातको समझ गया कि किस तरह कर्म अपना फल देते है । जैसा कोई कर्म बांधता है वैसा ही उसका फल होता है या उसमे कुछ तबदीली या परिवर्तन होसकता है।
शिक्षक-कर्म बन्धनेके पीछे नीचे लिखी हालतें होसक्ती है। जीवोंके परिणामोंके निमित्तसे परिवर्तन होजाता है ?
(१) उत्कर्पण-जीवोंके भावोके निमित्तसे पहले बाधे हुए कर्मोकी स्थिति या उनके अनुभागका बढजाना ।
(२) अपकर्षण-जीवोंके भावोंके निमित्तसे पहले बधि हए कर्मोकी स्थिति व अनुभागका घट जाना।
(३) संक्रमण-जीवोंके भावोंके निमित्तसे पापका पुण्यमें या पुण्यका पापमे बदल जाना।
(४) उदीर्णा-किन्हीं क्मों को किसी निमित्तके वश अपनी ठीक स्थितिके पहले ही उदयमे ल कर आड देना । जैसे हम किसी भोजन या औषधिको खाचुके है, फिर कोई और औषधि या भोजन खालें तो उस पहले भोजन या अपधिकी शक्तिको बढ़ा सक्त है या बुरे भोजनका असर अच्छा कर सक्ते है। यही वात कर्मके बंधके सम्बन्धमें भी जानना चाहिये । कभी कोई औषध खाकर भोजनको