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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा |
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चारों कषायोंके कर्म अबाधा कालके पीछे झडना शुरू होंगे उनमेसे एक कोई कपायके कर्म तो फल देके अंगे बाकीके तीन कषायके कर्म विना फल दिये झडेंगे, क्योंकि एक समय एक ही कषाय भावोंमे होती है । क्रोध, मान, माया, लोभ चारोंका एक साथ झलकाव नहीं होता है । अथवा जैसे कोई मानव एकात में बैठकर शास्त्रका पाठ बडे प्रेमसे आध घंटानक कर रहा है उस समय उसके धर्मका लोभ है इससे लोभ कपाय कर्म तो फल देकर झड रहे है, शेष तीन कपायके कर्म विना फल द्विये झड रहे है । कर्मका फल होनेमे बाहरी निमित्त बहुत आवश्यक हैं । जैसे किसी मानवके कामभाव जागृत करनेवाला वेद नोकपाय कर्म हरसमय झड़ रहा है परन्तु वह मानव एक पवित्र साधुके आश्रनमे रातदिन स्वाध्याय व ध्यान करता हुआ व धर्मचर्चा करता हुआ रहता है, वहां कोई स्त्रीका सम्बन्ध नहीं है न वहा कोई काम भावकी चर्चा है तब जबतक ऐसा सम्बन्ध बना रहेगा उसके भावमे काम भाव जागृत न होगा । यदि कदाचित् उसको कहीं सुंदर स्त्रीका दर्शन होजाय तो निमित्त होनेसे उसके वेदका उदय फलढाई हो जायगा । इसलिये यह उचित है कि हम लोग अपने आत्मबलमे हरएक काम विचारपूर्वक करें, खोटे निमित्तोंको बचायें तो हम बहुतसे अशुभ कर्मके उदयके फलसे बच सक्ते है । इसी तरह यदि हम धन कमानेका कोई निमित्त न बनावें तो धनागमका सहकारी पुण्य भी विना फल दिये झड जायगा -- निमित्त होनेसे फलदायी होजायगा । कभी कोई पाप या पुण्य कर्म अति तीव्र होता है तो उनका फल अवश्य होजाता है वैसा निमित्त मिलजाता है। जैसे कोई सम्हाल कर