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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा ।
जल्दी पका सक्ते है | जैसे स्थूल शरीर में भिन्न २ क्रियाएं होती हैं
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वैने मौके बने हुए सूक्ष्म शरीरमे जानना चाहिये ।
कर्मो के आसव और बन्धके सबंध में जो जो जरूरी बातें जानने लायक थीं सो आपको बता दीगई है ।
आठवां अध्याय ।
संवर, निर्जरा और मोक्ष ।
शिक्षक - अब हम आपको सवरके सम्बन्धमें कुछ विशेष बताना चाहते है ।
आस्रवका विरोधी संवर है । जिन भावोंसे कर्म आते हैं इनको रोक देना संवर है । क्या आप बताएंगे कि आसव भाव क्या क्या है ?
शिष्य - पहले आप बता चुके है कि कर्मोके आनेके भाव अर्थात भावास्रुव मिथ्यात्व, अविरत. प्रमाद कषाय, योग है । शिक्षक- उन हीके विरोधी सन्यकूदर्शन. त्रन, अप्रमाद, निष्कपाय तथा योगरहितपना है ।
मिथ्यात्वके दूर करने के लिये हमे सम्यकुदर्शन प्राप्त करना चाहिये | निश्चय सम्यक्दर्शन अपने आत्माके असली स्वरूपका विश्वास है कि यह आत्मा पूर्ण ज्ञातादृष्टा आनन्दमई वीतराग व अमृतक है । यह भावकर्म रागद्वेषादि, द्रव्यकर्म ज्ञानावरणादि, नोकर्म शरीरादिसे भिन्न है । इस निश्रय सम्यक्दर्शन के लिये व्यव