________________
संवर, निर्जरा और मोक्ष ।
[१६३ निक्षेपण--किसी वस्तुको देखकर रखना उठाना । (५) उत्सर्ग या प्रतिष्ठापन--मल मूत्र जंतु रहित भूमिमे करना।
पाच प्रकार समितिको पालते हुए प्रमाद व कषायको जीतनेके लिये ढग विध धर्मका भाव रखना चाहिये।
(३) दश धर्म-(२) उत्तम क्षमा-कष्ट पाने व हानि किये जानेपर भी क्रोध न करके क्षमा रखना। परिणामों को मलीन न करना उत्तम क्षमा है।
(२) उत्तम मार्दव-अधिक तपस्वी व विद्वान होनेपर भी व आमान पानेपर भी कभी मानभाव न लाकर कोमल भाव व विनीत भाव रखना उत्तम मार्दव है।
(३) उत्तम आजिव--अनेक कष्ट होनेपर भी मायाचार करके स्वार्थको सिद्ध करनेकी भावना न करनी । सरलतासे मन, वचन, कायको धर्म लाभार्थ माया रहित वतांना उत्तम आर्जव हे |
(2) उत्तम शौच--लोभमे परिणाम मैला न करके, पूर्ण संतोप पालना । लाम, अलाममें समभाव रखना उत्तर गौच है।
(५) उत्तम सत्य -धर्म वृद्धि के हेतु शास्त्रोक्त वचन कहना। कभी भी परमागमके विरुद्ध नही कहना उत्तम सत्य है ।
(६) उत्तम संयम--पाच इन्द्रिय मनको अपने आधीन रखना तथा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, व त्रस कायिक प्राणियोकी रक्षा करना उत्तम संयम है। (७) उत्तम तप-कर्मो के नाशके लिये
आत्माको ध्यानसे तपाकर शुद्ध करना उत्तम तप है। (८) उत्तम त्याग-परोपकारके लिये जान दान व अभय दान आदि देना उत्तम त्याग है । (९) उत्तम आकिंचन्य -सर्व पर पदार्थोमे ममता त्यागकर