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आस्रव और बंध तत्व।
[१५५ अनुभाग बंधका कुछ विशेष हाल यह है कि घातीय कर्मोमें कपायोंकी तीव्रता या मंदतासे चार प्रकारका रस या फल दान बल पड़ता है। लता (वेल) के समान कोमल, २ दारु (काठ)के समान कटोर, ३ अस्थि (हड्डी) के समान कठोर, ४ पाषाण (पत्थर) के समान अति कठोर। .
अघातीय कर्मोकी पुण्य प्रकृतियोंमें चार प्रकारका रस या फल दान बल पड़ता है । १-गुड़के समान कम मीठा, २-खांडके समान अधिक मीठा, ३-शर्करा (मिश्री)के समान बहुत मीठा, ४-अमृतके समान बहुत मीठा।
अघातीय कर्मोकी पाप प्रकृतियोंमे चार प्रकारका रस या फल दान बल पड़ता है। १-नीमके समान कडुवा, २-कांजीरके समान कडवा, ३-विषके समान खुरा, ४-हालाहल विषके समान बहुत बुरा।
प्रदेश बंधमें इतना जानना चाहिये कि हरसमय योगोंके अनुसार कर्मवर्गणाएं खिंचकर आती है। और वे उस समय बंधनेवाले कमोंमें यथासंभव बंट जाती हैं। यदि योगशक्ति तेज चलती है तो अधिक कर्म पुद्गल आते हैं। यदि मंद चलती है तो कम कर्म पुद्गल आते हैं।
शिष्य-कर्मके फल देनेकी कोई विशेष विधि है ?
शिक्षक-कर्म कैसे फल देते है, इसका कुछ हाल आपको बता देना जरूरी है। जब कर्म बन्धते हैं तब उनके लिये कुछ