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जीव तत्व।
[११७ फैलते है और संकटके कारणको मेट देते है। यह शुभ तेजस समुद्घात है।
किमी साधुको किसीके द्वारा दुर्वचन सुननेपर व प्रहारादि कष्ट दिये जानेपर क्रोध आजाता है और वह वशमें नहीं रहसत्ता है तब साधुके बाएं कन्धसे अशुभ तैजस गरीरके साथ आत्माके प्रदेश फैलकर निकलते है जिससे क्रोधका लक्ष्य फैलकर भस्म कर दिया जाता है और साधु भी उससे भस्म होकर दुर्गति पाते है।
(६) आहारक समुद्घात किसी ऋद्धिधारी साधुके मस्तकमे पुरुषाकार एक मृटम पुतला आत्माके प्रदेशोंके साथ केवली या श्रुत केवलीके निकट जाकर उनके दर्शन करके तुर्त लौट आता है। जिससे कभी माधुको कोई शंका होती है वह दूर होजाती है।
(७) केवली समुद्धात-उसको कहते है कि जब किसी अर्हतकी आयु कम हो व अन्य कर्मोकी स्थिति अधिक हो तो उसके आत्माले प्रदेश तीन लोकमे फैल जाते है और फिर शरीराकार होजाने हैं जिससे सर्व कर्मोकी स्थिति आयु कर्मके बराबर होजाती है।
शिक्षक--क्या इनमेंसे किसी बातकी परीक्षा की गई है ?
शिष्य--इस समय परीक्षा होना बहुत ही दुर्लभ है; क्योंकि महान योगीश्वर नहीं मिलते है। परन्तु ये सब बातें संभव प्रतीन होती हैं, क्योंकि आत्मामें अनंत बल है व ध्यानसे बड़ी बड़ी योग्यताएं झलक जाती हैं। यह तो आपको मालूम होगा कि विजलीकी शक्ति आजकल बडा बड़ा अपूर्व काम करती है। कई हजार मीलपर बजनेवाला बामा या गाना यहां सुनाई देसक्ता है । विना तारके सम्बन्धके विजलीके जोरसे ही फौरन शब्द दूर दूर फैल जाता है।