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विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा। शिक्षक-अवश्य, ये बडे कामकी बातें है ।
(१) वेदना या शरीरमे कष्ट होनेपर आत्माके प्रदेगोका कुछ दूर बाहर निकलना, वेदना समुद्घात है ।
(२) क्रोधादि कषायोंकी तीवतामे आत्माका कुछ दूर फैलकर निकलना कपाय समुद्घात है।
(३) जिनको गरीर बढ़ानेकी व एक शरीरके अनेक गरीर बनानेकी शक्ति है उनके आत्माके प्रदेश नाना प्रकारके बने हुए गरीरोंमें फैल जाते है. इसको वैक्रियिक समुद्घात कहते है । जितने देव हैं वे कभी मूल शरीरसे कहीं नहीं जाते है, वे दूसरे शरीर एक साथ एक व कई बना सक्ते है, उनमे आत्माके प्रदेश फैला सक्ते हे. उन ही शरीरोको भेजकर काम लेसक्त है। देव अनेक तरहके पशु पक्षी आदिका शरीर भी बनासक्ते है। उनके शरीरके पुद्गल ऐसे होते है जिनमे नाना रूपमे बदलनेकी शक्ति होती है। नारकी भी अपने गरीरको भिन्न २ रूपोंमें बदल सक्ते है। वे अनेक गरीर नहीं बना सक्ते है। साधुओंको भी योगाभ्यासमे अपने शरीरको बढ़ाने घटाने व बदलनेकी शक्ति होती है।
(४) कोई कोई जीव मरनेके अंतर्मुहूर्त पहले जहा उनको मर कर जन्म लेना है उस योनिस्थानको फैलकर स्पर्श कर आते हे फिर मरते है इसे मारणातिक समुद्घात कहते है।
(५) योगाभ्याससे जिनको ऋद्धिय सिद्ध होजाती है वे साधु शुभ या अशुभ तैजस समुद्घात करते है । किसी साधुको रोग व दुर्भिक्ष आदिका प्रचार देखकर दया आजाती है। तब उसके दाहने कंधेसे तैजस शरीर (electric body) के साथ आत्माके प्रदेश