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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। बनता है यह बात हम बता चुके है। तेजस शरीर एक प्रकारकी बिजलीका शरीरे है। जो तैजस वर्गणाओं (electric molecules) से बनता है । शेष तीन शरीर प्राप्त होते है तथा छूटते है । औदारिक शरीर वह स्थूल शरीर है जो मनुष्य गति व तियेच गतिवालोंके होता है। एकेन्द्रियसे पंचेन्द्रिय पर्यंत सर्व जीवोंके यह स्थूल शरीर होता है । इसीके मिलनेको जन्म व इसके छूटनेको मरण कहते है। वैक्रियिक गरीर ऐसे पुद्गलोंसे बनता है जिसमें रूप बदलनेकी शक्ति होती है। यह स्थूल शरीर देवा और नारकियोंको होता है । आहारक शरीर एक विशेष शरीर है जो आहारक समुद्घातके समय किसी विशेष मुनिके पुरुषाकार मस्तकसे निकलता है। हमारे पास इस समय तीन शरीर है-औदारिक, तैजस, कार्मण । वृक्षोंके भी ये ही तीन शरीर है। कीटोंके व पशु पक्षियोंके भी ये ही तीन शरीर है। पुद्गलोके अनेक भेद होते है इसलिये इन शरीरोंकी रचनामें अनेक भेद है।
जीव तत्वके सम्बन्धमें यह बात खास ध्यानमे रखनेकी है कि निश्चय नयसे या मूल द्रव्य स्वरूपकी अपेक्षा यह जीव बिलकुल शुद्ध है । सिद्ध भगवानके समान है। इसमें कोई भी सासारिक अवस्थाएं नहीं होती है। हमे उचित है कि हम अपने आत्माको आत्मारूप देखा करें । व्यवहारनयसे या अवस्थाकी दृष्टिसे कर्मोके सम्बन्धके कारण जीवोंमें चौदह गुणस्यान व चौदह मार्गणाएं चौदह जीव समास, पाच प्रकारके शरीर, रागादिक अशुभ भाव ये सब बातें पाई जाती है। बहिरात्मा अज्ञानी इन कर्मोके सम्बन्धसे होनेवाली अवस्थाओंको ही आत्माका मूल स्वभाव मान लेता है। जब कि अंतरात्मा ज्ञानी या