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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा । ___(१)आहार वर्गणा ( assimilative molecules ) इनमे औदारिक, वैक्रियिक, तथा आहारक तीन गरीर बनने है ।
(२) तेजस वर्गणा (eletrne molecules) विनलीके पिंट इनसे तैजस शरीर बनता है जो सब संसारी जीवाफे सदा पाया जाता है। __(३) भापा वर्गणा ( voes! n olecules ) इनमे गन्न बनते है।
(४) मनो वर्गणा (mind molecules) इनसे हृदयस्थानमें आठ पत्तोंका कमलाकार मन बनता है।
(५) कार्मण वर्गणा (karmae molecules) इनसे मृक्ष्म कार्मण शरीर बनता है, जो सब संसारी जीवोंके सदा पाया जाता है।
आहारक वर्गणाके भीतर जितने परमाणु हे उनके बहुत अधिक तैजस वर्गणामें, तैजससे बहुत अधिक भाषा वर्गणामे, भाषामे बहुत अधिक मनो वर्गणामे, मनसे बहुत अधिक कार्मण वर्गणामे हे इसीसे हरएककी शक्ति अपने पहलेसे बहुत अधिक है। सर्वसे अधिक बलिष्ट कार्मण वर्गणा है ।
ये पाचों ही प्रकारकी वर्गणाएं सर्वत्र फैली हुई है । कोई जगह इनसे खाली नहीं है । ये वर्गणाए. परमाणुओंके विछुडनेसे बिगडती है व उनके मिलनेसे बनती रहती है।
शिष्य-क्या परमाणुओंके मिलनेका कोई नियम बताया गया है ?
शिक्षक-परमाणुओंके बन्ध होनेके साधक चिकना व रूखापना है। चिकनेपनेके व रूखेपनेके अंश अनेक होते है । जैसे बकरीके दूधसे अधिक चिकनई, गौके दूधमे, गौके दूधसे अधिक चिकनई भैसके दूधमे होती है, भैसके दृधसे अधिक चिकनई ऊंटनीके दूधमें व धसे