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आस्रव और बंध तत्व।
सातवां अध्याय।
आस्रव और बंध तत्व। शिक्षक-हम आपको सात तत्वोंमे आस्रव व बन्ध तात्वोंका कुछ मस्वरूप बना चुके है, आज कुछ विशेष बातें बताएंगे___आम्रव और बंध कर्मोका एक साथ होता है। आना और बंधना दो भिन्न २ क्रियाके कारणसे इनके दो नाम हुए है। असलमें अशुद्धताकी दृष्टि से दोनों बातें एक है । इन दोनोंके कारण भाव आत्रव और भाव बंध एक ही हैं। जिन भावोंमे कर्म वर्गणाएं आती है उनही भावोंसे उनका बंध भी होता है। दोनोंका समय या आस्रव व बंध श्रण भी एक ही है। ____ यह हम आपको बता चुके है कि कर्मोके आठ मूल प्रकृति भेद हे इनमेसे सात मूल कर्मोका सदा ही बंध नौमे गुणस्थान तक हुआ करता है। आयु कर्मका बंध सदा नहीं होता है। जैनसिद्धांत में यह कायदा बताया है कि एक जीवनमें आठ टफे आयुके आठ विभागोमे बंधका अवसर आता हैं। यदि आठ त्रिभागोंमें आयुका बंध नहीं हुआ तो मरणके अंतर्मुहूर्त पहले परलोकके लिये आयु कर्मका बंध अवश्य होगा। जैसे किसीकी आयु ८१ वर्षकी है तब पहला त्रिभाग ५४ वर्ष बीतनेपर अंतर्मुहूर्तके लिये आयगा । दूसरा त्रिभाग २७मेसे १८ वर्ष बीतनेपर ९ वर्षकी शेष आयुमें अंतर्मुहूर्त के लिये आयगा। इसी तरह तीसरा त्रिभाग ३ वर्ष आयुके शेप रहनेपर आयगा। चौथा एक वर्ष बाकी रहनेपर आयगा। पांचवा त्रिभाग १