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विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा । (१) किसीको दान देते हुए विघ्न करना दानातरायके बंधका कारण है।
(२) किसीके लाभ होनेमे विन्न करना, लाभांतरायके वंधका कारण है।
(३) किसीके भोगोंमें विघ्न करना, भोगातरायके बन्धका कारण है।
(४) किसीके उपभोगोंमे विघ्न करना, उपभोगातरायके बंधका कारण है।
(५) किसीके उत्साहको भंग कर देना, वीर्योतरायके वंधका कारण है।
शिष्य-कर्मोके आठ भेद आपने वताएं है, इन आठ प्रकृतियोके भेद भी है ?
शिक्षक-कर्म प्रकृतियोंके एकसौ अडतालीस भेद है, आपको थै बताता हूं आप ध्यानमें लेलें।
(१) ज्ञानावरण कर्मके पांच भेद
मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय तथा केवल। इन पाचों ज्ञानोंको आवरण करनेवाले पांच कर्म है।
(१) मतिज्ञानावरण, (२) श्रुतज्ञानावरण, (३) अवधि ज्ञानावरण, (४) मन पर्ययज्ञानावरण, (५) केवलज्ञानावरण ।
(२) दर्शनावरण कर्मके नौ भेद(६) चक्षु दर्शनावरण-चक्षु दर्शनको रोकनेवाला ।
(७) अचक्षु दर्शनावरण-अचक्षु दर्शन, (आखके सिवाय और इन्द्रिय तथा मनसे होनेवाले दर्शनोको रोकनेवाला ।