________________
आस्रव और बंध तत्व।
। [१३५ भागबंध कपायोंके द्वारा कम या अधिक होता है। इसमे विशेष बात' जाननेकी यह है कि जब कषाय तीव्र होती है तब आयुको छोड़कर सर्व कर्मोंमें स्थिति अधिक पड़ती है और जब कयाय मंद होती है तब सातों कर्मों में स्थिति कम पड़ती है। आयु कर्मका हिसाब यह. है कि जब कषाय तीव्र होती है तब नरकायुकी स्थिति अधिक का तीर्यच, मनुष्य व देवायुकी स्थिति कम पडती है और जब कषायः मंद होता है तब नरंकायुमें स्थिति थोड़ी व तीर्यच मनुष्य व देव आयुमें स्थिति अधिक पड़ती है।
अनुभाग बन्धका नियम यह है कि तीव्र कषायोंसे सर्व पाप काँमें अनुभाग अधिक व पुण्य कर्मों में कम पड़ेगा तथा मंद कपायोंसे पुण्यकर्ममें अनुभाग अधिक व पाप कर्मों में अनुभाग कम पड़ेगा। आयुकर्ममें मात्र नरक आयु ही अशुभ या पापरूप कहलाती है । इस कथनसे आप समझ गए होंगे कि जब किसीके मंद कषायरूप शुभ उपयोग होगा तब घातीय कर्मों में स्थिति भी कम पडेगी व अनुभाग भी कम पड़ेगा तथा अघातीय पुण्य प्रकृतियोंमें भी स्थिति कम पडेगी परन्तु अनुभाग ज्यादा पड़ेगा। जिसका फल यह होगा कि जव उन घातीय कोका उदय होगा तब फल मंद होंगा परन्तु यदि पुण्यरूप अघातीय कर्मोका उदय होगा तो फल तीव्र होगा । सुखकी सामग्री अच्छी प्राप्त होगी। ___कर्मोंके आने व बंधनेमे कारणरूप भाव सामान्यसे पाच है(१) मिथ्यादर्शन, (२) अबिरति, (३) प्रमाद, (४) कषाय, (५) योग ।*
*-मिथ्यादर्शनाविरति प्रमादकषाययोगा बंधहेतवः ।।१४८त.सू.॥
___