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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। (६) प्रमेयत्व गुण-जिस शक्तिके निमित्तसे द्रव्य किसी न किसीके जानका विषय हो ।
अनीव तत्वके सम्बन्धमे जो जरूरी जानने योग्य बातें थीं उनका कथन मैंने कर दिया है। आप इनपर विचार करेंगे तो आपको मालूम होगा कि धर्म, अधर्म. आकाग, काल ये चार द्रव्य सदा स्वभावमे रहते है । इनमे हलन चलन क्रिया नहीं होती है । संसारी जीव और पुद्गल हलन चलन क्रिया करते है। इन्दीकी रचना यह दृश्य रूप जगत है । इनकी अवस्थाएं नाना प्रकार वनती विगडती दिखलाई पड़ती है । यह लोक छ मूल द्रव्योका समुदाय है । ये सदासे है व सदा बने रहेंगे इसलिये यह लोक नित्य है। अवस्थाओंके बदलनेकी अपेक्षा यह जगत अनित्य है । यह लोक, कभी नया बना नहीं न कभी विलकुल लोप होगा । अवस्थासे अवस्थातर हुआ करेगा।
ज्ञानीको उचित है कि वह क्षणिक जगतकी अवस्थाओंमे मोह न करे, मूल द्रव्यपर दृष्टि रखे। छ हों द्रव्योंमे एक निज आत्म द्रव्य ही सार है। उसपर दृष्टि रखके व उसीका ध्यान करके हमे मात्मानन्द प्राप्त करना चाहिये।
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