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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा । शिष्य-यदि स्कंध स्कंधसे मिलकर एक पिंड बने नौभी क्या यही नियम होगा।
शिक्षक-मैं समझता है कि ऐसा ही नियम स्कंधके लिये भी होना चाहिये । यदि किसी स्कंधमे ५०० अंश चिकनई होगी व दूसरे स्कंधमे ५०२ अंश चिकनई या रूखापन होगा तो वे दो स्कंध भी मिलकर एक पिड हो जायगे यद्यपि इस बातका अधिक विस्तार मुझे जैन शास्त्रमे देखनेको नहीं मिला । कठिनता तो यह है कि चिकने व नवपनके अंगोंकी जाच कैसे की जावे। इसहीके लिये आजकलके वैज्ञानिकोको खूब विचारना चाहिये ।
शिष्य-बात बहुत जरूरी है। मैंने ध्यानमे लेली है, किन्हीं वैज्ञानिक प्रोफेसरोसे बान करेगा। पुदलके सम्बन्धमे और कोई वात जाननेकी है।
शिक्षक-जो जरुरी २ बातें था वे आपको बता दी है । इस सर्व जगतकी रचना पुद्गलोके द्वाग होती रहती है व बिगड़ती रहती है। आजकल ( science) सायंस (विज्ञान ) जो कुछ भी खोज कर रहा है वह सब पुगलकी अपूर्व शक्तिके कारणसे है। तथा जहातक मेरा अनुमान है मै कहसक्ता हूं कि यदि वह मायंसकी खोज सत्य होगी तो उसका मिलान जैन सिद्वातसे होजायगा।
शिष्य-आपने कहा था कि आकागके दो भेद है- लोकाकाश तथा अलोकाकाग इनका कुछ विशेष बताईये ।।
शिक्षक-आकाग एक अखण्ड अनंत द्रव्य है । इसकी सीमा नहीं है । इसीके मध्यमे जितने आकाशके भागमे जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय तथा काल पाए जाते है उसको