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जीव तत्व।
[ ११५ (१२) सम्यक्त-उपशम,क्षयोपशम, क्षायिक x तीनोंमेंसे एक (१३) सनी-सैनी। (१४) आहारक-आहारक । यह तो मै समझ गया । कुछ और समझाइये ?
शिक्षक-आपको हम यह बता चुके है कि यह जीव अपने शरीरके आकार रहता है, यद्यपि इसका मूल आकार लोकाकाश प्रमाण असंख्यात प्रदेशी हे अर्थात् लोकाकाशमें व्यापक होसकता है परन्तु इसमें नाम कर्मके उदयसे संकोच विस्तार होता है । इस्लिये जैसा शरीर पाता है, उसी प्रमाण रहता है। यदि शरीर फैलता है तो जीवका आकार भी फैलता है । शरीरके प्रमाण आकार रखते हुए भी समुदघातके समय यह जीव अपने मूल शरीरसे फैलकर कुछ दूर बाहर जाता है फिर गरीर प्रमाण होजाता है । ___ मुल शरीरको न छोडकर तैजस कार्मणरूप दो सूक्ष्म शरीरों के साथ जीवके प्रदेशोंका शरीरसे बाहर निकलना उसको समुद्धात कहते है । वे समुद्घात सात हैंवेदना, कषाय, वैक्रियिक, मारणांतिक, तैजस, आहारक, केवली।
शिष्य-क्या इनका स्वरूप समझायेंगे ? ___x केवली, श्रुतकेवलीके निकट क्षायिक सम्यक्त पैदा होता है। इसलिये इस कालमें नहीं होता है। दो होसकते है।
+ मूल शरीरम छंडिय, उत्तर देहस्य जीव पिडस्स | णिग्गमण देहादो होटि समुग्घाद णामतु ॥ ६६७॥ वेयणा कसाय वे गुन्धि योय मग्णति यो समुग्ध दो। तेजाहारो छटो सत्तममओ केवलीण तु ॥ ६६६ ॥ गो. जी.