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नैनीक तत्व द्रव्योंके कारण लोक अपनी मर्यादामें स्थिर है, नहीं तो अनंत आंकाशमें जीव पुद्गल चले जाते-सर्व लोक विखर जाता।
शिप्य-इनको आपने द्रव्य क्यों कहा? . शिक्षक- जो अपने ही गुणोंमें अवस्था किया करे उसे द्रव्य कहते हैं। जीव और अजीव तत्त्वोंमें छः द्रव्य गर्भित हैं। एक जीव द्रव्य, पांच अजीव द्रव्य। ये छहों पदार्थ कूटस्थ नहीं हैं, अपने२ स्वमावोंमें रहते हुए कुछ काम किया करते हैं इसीलिये इनको द्रव्य (subs' ance) कहते हैं। छः द्रव्योंके सिवाय जगतमें कुछ नहीं है, इन ही की सारी रचना है। छः द्रव्योंमें काम करनेवाले (artors) संसारी अशुद्ध जीव और पुद्गल हैं। ये चार काम करते रहते हैंचलना, ठहरना, जगह पाना तथा बदलना । इनके इन चरों कामोंसें क्रमसे सहायता देनेवाले चार द्रव्य हैं--धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय शाकाश और काल । यह नियम है कि हरएक कार्यके लिये दो कारणोंकी जरुरत है-एक उपादान या मूल कारण (root ar primay cause ) दुसग निमित्त या सहायक कारण (auxiliary onus9) जैसे रईसे तागे बने । उपादान कारण रुई है, निमित्त कारण' चरखा व चरखा चलानेवाला आदि है। रोटीका उपादान कारण गेहूं है, निमित्त कारण चक्की, चकला, आग व बनानेवाली है।
शिष्य-द्रव्यका भी कोई लक्षण है ?
शिक्षक-जो सदा बना रहे; न कभी पैदा हो न कभी नाश हो उसकी द्रव्य कहते हैं। दूसरा लक्षण यह हैं कि उसमें हर समय तीन बातें पाई जावे-उत्पति, व्यय तथा स्थिरपना (rise, decay