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विद्यार्थी जैन धम शिक्षा। उदय या असरसे सच्चा श्रद्धान बिलकुल न हो। (२) सम्यक्त मिथ्यात्व कर्म-जिसके उदयसे सच्चा झूठा मिला हुआ मिश्र श्रद्धान 'हो जैसे दही गुडका मिला स्वाद आवे । सम्यक्त कर्म-जिसके उदयसे सन्यग्दर्शन या सच्चे विश्वासमें कुछ मल या दोष लगे-निर्मल सम्यक्त न हो। चारित्र मोहनीयके पच्चीस भेद हे-सोलह कपाय और नौ नोकपाय या ईषत् कपाय या हलके कपाय।।
४-अनंतानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ जो मिथ्यात्वको मदद दे, जिसके उदयसे सम्यग्दर्शन और स्वरूपाचरणचारित्र (आत्मलीनतारूप भाव) न हो ।
४-अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ । जिसके उदयसे अप्रत्याख्यान अर्थात् थोडा त्याग या श्रावकके व्रत न होसकें--जो देशविरतको रोके ।
४--प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ । जिसके उदयसे पूर्णत्याग या मुनिके व्रत न होसकें, जो मुनिके महाव्रतोंको रोकें।
४--संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ । जिसके उदयसे यथाख्यात चारित्र या पूर्ण वीतरागता न हो। जो यथार्थ व नमूनेदार चारित्रको रोकें।
९.नोकषाय--हास्य, रति. अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुवेद, नपुंसकवेद (तीन प्रकारका कामभाव)।
इसप्रकार २५ कषाय हुए। - ऊपरके कथनसे आपने जाना होगा कि क्रोध, मान, माया, लोम चार चार प्रकारका होता है। अर्थात अनं० क्रोध, अप्र० क्रोध, प्रत्या० क्रोध, संज्व० क्रोध । इत्यादि।