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जीव तत्व।
चार प्रकारके क्रोधके दृष्टांत है--१.-पत्थरकी रेखाके समान बहुत कालमें मिटे, २. पृथ्वीकी रेखाके समान कुछ कालमें मिटे, ३--धूलमें रेखाके ममान जल्दी मिटे, ४--जलमें रेखाके समान तुर्न मिटे।
चार प्रकार मानके दृष्टात है--१.-पत्थरके खंभेके समान जो न नमें, २-हड्डीके समान कठिनतासे नमे, ३. काठके समान जल्दी नमे. ४..वेतके समान तुर्त नम जावे।
चार प्रकार मायाके दृष्टात है..१ वांसकी जडके समान टेढापन, निसका सीधा होना कठिन हो । २--मेढ़ेके सींगके समान कठिनतासे सीधा हो । ३ -गोमूत्रके समान टंढापन जल्दी मिटे । ४--खुरवेके समान तुर्त मिटे।
चार प्रकार लोभके दृष्टांत है १ मिर्च के रंग समान न मिटनेवाला। २. रथके पहियेके रंग समान कठिनतासे मिटे । ३.-शरीरके मलके समान जल्दी मिटे । ४. हल्दीके रंगके समान तुर्न उड़ जाय।
अब आप गुणस्थानोका स्वरूप जल्दी समझ जायेंगे ।
१-मिथ्यात्व गुणस्थान-जिस दरजेमे रहते हुए जीवको अपने आत्माका विश्वास न हो कि यह असलमें परमात्माके समान शुद्ध है । इसका स्वभाव ज्ञातादृष्टा अविनाशी वीतराग व परमानंद मय है। न आत्मीक आनंदकी श्रद्धा हो। इन्द्रिय सुखको ही सुख जाने। सच्चे देव, शास्त्र, गुरु व धर्मपर व सात तत्वोपर श्रद्धान न हो। इस दरजेमें मिथ्यात्व कर्म और चार अनंतानुबन्धी कपायका उदय रहता है | सर्व संसारी प्राणी इसी दरजेमें पड़े हैं।