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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा । चौथा अध्याय। तत्वज्ञानका साधन ।
शिप्य-कृपाकर यह वताइये कि इन सात तत्वक जानने के उपाय जैन शास्त्रमे क्या २ क है ? ___ शिक्षक-यह प्रश्न बहुत ही जरूरी है । वहुतमे उपाय कहे है। मै जरूरी २ आपको बताऊंगा।
हम अपने वचनोंसे किसी भी पदार्थको सर्वाग एक साथ नहीं कह सक्ते है। जिस दृष्टि या अपक्षासे एक अर्मा कयन किया जाता है उसको नय (Standpoint) कहते है। जैन सिद्धातमें दो नय वहुतजरूरी है-एक निश्चयनय या द्रव्यार्थिक नय (Real or substantial point of View) दूसरा व्यवहार नय या पर्यायार्थिक नय (practical or point of moaification).
जो नय असली, मूल, शुद्ध स्वभावको बताये उसको निश्चयनय कहते है। जो मूल स्वभावको न बताकर शुद्ध या अशुद्ध अवस्थाओंको या भेदोंको बतावें सो व्यवहारनय है। जगतके साधारण प्राणी व्यवहारनयका ज्ञान तो रखते है परन्तु निश्चयनयसे है । जानकार नहीं है। इसीलिये उनको मूल तत्व हाथ नहीं लगता। अशुद्ध वस्तुकोशुद्ध करनेका यही उपाय है कि हम उस वस्तुको दो दृष्टियोंसे जाने । एक रुईका बना सफेद कपडा मैलके संयोगसे मैला है। इसको निश्चयनयसे हम रुईका बना सफेद देखेंगे तथा व्यवहारनयसे इसको मैलसे मिला मैला देखेंगे। तब हमारी यह बुद्धि पैदा होगी कि मैल