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विद्यार्थी जनधर्म शिक्षा हुए झडनाते है । इसको अविराक निर्जरा कहते हैं। जैसे नावके. भीतर भरे हुए पानीको धीरे धीरे निकाल दिया जाये और नवे पानीके आनेका छेद बन्द कर दिया जावे तो वह नाव चलने लायक होकर सीधी अपने स्थानपर चली जायगी, इसी तरह सवरके द्वारा जब नए कर्मोको रोक दिया जाता है और आत्मध्यानके द्वारा धीरे २ स्मोकी निर्जरा की जाती है तो बंधे हुए कर्म दूर किये जाने है तब आत्मा कभी न कभी कर्मोसे खाली या मुक्त होजाता है।
शिप्य-मोक्ष तत्व किसे कहते है।।
शिक्षक-आत्माका सर्व कमोसे छूट जानेको व नवीन कर्म बंक होनेके कारणोके मिट जानेको मोक्ष तत्त्व कहते है । मोक्ष होजानेपर आत्मा शुद्ध होजाता है। इसी शुद्ध आत्माको सिद्ध कहते है।
इन सात तत्त्वोंसे यह मलेप्रकार जानलिया जाता है कि आत्मा अशुद्ध कैसे होता है व शुद्ध कैसे होसक्ता है। इसी लिये इनका जान लेना जरूरी है।
शिष्य-पुण्य पापका क्या स्वरूप है ?
शिक्षक-पुण्य कर्मको पुण्य व पाप कर्मको पाप कहते है। सात तत्वोंके भीतर इनका स्वरूप गर्मित है। आस्रव तत्व और बंध तत्वमें ये दोनों आजाते है।
शिष्य-फिर इनको अलग कहनेका क्या प्रयोजन है ? शिक्षक-क्योंकि जगतमे पुण्य व पाप प्रसिद्ध है, इसीलिये * तपसा निर्जरा च ॥ ३९ बंधहेत्वमावनिर्जराम्या कृत्लकर्म विप्रमोक्षो मोक्षः ॥२॥१०॥ त०