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विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा। सब जगह है जहा२ पाच इन्द्रिय मनवाले जीव पैदा होते है। सम्यग्दर्शनकी स्थिति थोडी भी हे ब अनंतकाल है। सम्यग्दर्शनके भेद तीन है--औपशमिक क्षायोपशमिक, व क्षायिक । जो वाधक कर्मोके उपशमसे हो वह औपशमिक है। यह करीब ४८ मिनटसे ज्यादा नहीं रहता है। इस समयको अंतर्मुहर्त कहते हैं। जो वाधक कर्मोके क्षयसे, उपशमसे या कुछ उदय या असरसे हो वह क्षयोपगमिक है। इसकी स्थिति अधिकसे अधिक व्यासठ सागर ( असंग्व्य चोका होता है) जो बाधक कर्मोंके नागसे हो वह क्षायिक है। यह कभी छूटता नहीं, अनंत कालतक रहता है।
शिष्य-यह तरीका तो बहुत अच्छा है। इसमे हम हरएक विषयपर लेख बना सक्त है।
शिक्षक-किसी विषयपर लेख लिखने हुए छ से कममे भी काम चल सक्ता है । जिस किसीमे छहो बातें हम कह देंगे वहा पूरा वर्णन हो जायगा । अच्छा, आपके पास यह कोट है इसका वर्णन कर जाओ।
शिष्य-कोट वह है जिससे शरीरको शरदी, गर्मी व हवासे बचाया जाता है, यह निर्देश है। कोटका स्वामी मै हूं. यह स्वामित्व है। यह कोट कपड़ेसे व दरजीसे बना है, यह साधन है। कोट मेरे शरीर पर रहता है या कमरेमे टंगा रहता है या गठरीमें बंधा रहता है यह आधार है। कोट दो वर्षसे ज्यादा चलता नहीं मालूम होता। यह इसकी स्थिति है। कोटके भेद दो कह सक्ते है--मैला या उजला। उजला साफ दिखता है, मैला बुरा मालम होता है।
शिक्षक-अच्छा, आप मनुष्य है इसीपर भाषण कर जाइये।