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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। उस बातको जान जायगा । जो ज्ञान सर्व पदार्थोके सर्व गुणोंको व सर्व पर्यायोको एकसाथ विना किसी आलम्बनके जान सके वह केवलज्ञान Perfect Knowledge है। इसीको सर्वज्ञपना कहते है।
नयोंके दो भेद हम बता चुके हे--निश्चयनय और व्यवहारनय। अब दूसरे जरूरी भेद बताते है । नयींके सात भेद जरूरी है। नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, सममिरूढ़, एवंभृत; इनमेसे पहली तीन नयोंको द्रव्यार्थिक कहते है क्योंकि वह द्रव्य या सामान्यको जानती है। पिछली चार नयोंको पर्यायार्थिक कहते हैं क्योंकि वे पर्याय या अवस्था--विशेषको जानती है। इन नयोंको जाननेकी आवश्यक्ता इसलिये है कि जगतमें व्यवहार तरह के वाक्योंसे होता है, वे वचन किस अपेक्षासे सत्य है, इस बातको जाना जासके, तथा कहनेवाला झूठा न कहलावे ।।
नैगमनय-जिस नयसे एक निश्चित वातपर न जाकर विकल्प उठाया जावे। या संकल्प किया जावे और उसी संकल्पका ग्रहण हो सो नैगमनय है। इसके तीन भेद है
(१) अतीतनैगमनय-भूतकालकी बातमें वर्तमानकालका संकल्प जिससे हो, जैसे कहना कि आज बादशाहका जन्मदिवस है। यह कथन इस नयसे ठीक है क्योंकि हमने आनके दिन यह मान लिया कि बादशाहका जन्म हुआ, यद्यपि जन्म तो वास्तवमें ६० वर्ष पहले हुआ था। या यह कहना कि आज श्री महावीर भगवान मोक्ष गए हैआज उनका निर्वाणदिन है, ऐसा दीवालीके दिनको कहते है सो कहना इस अतीतनैगमनयसे ठीक है, वास्तवमें ठीक नहीं है क्योंकि जन्मको तो करीब २५०० वर्ष हुए।