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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। बहुत है, दूसरी जगह काठ थोडा है। यह अल्पवहुत्व है। वास्तवमे यह भी अच्छी रीति है । इससे हम किसी विषयका ठीक वर्णन कर सक्ते है। क्या और भी कोई रीति पदार्थों के जाननेकी है ?
शिक्षक-प्रमाण और नयोंसे भी पदार्थोका ज्ञान होता है।x शिष्य-प्रमाण नयका स्वरूप समझाइये ।
शिक्षक-जिस ज्ञानसे पदार्थको पूरा जान सकें वह प्रमाण है व जिससे कुछ अंश जान सकें वह नय है। जैसे यह नारंगी है ऐसा जानना प्रमाणसे हुआ। यह लाल है ऐसा जानना नयसे हुआ।
प्रमाण ज्ञानके पाच भेद हे-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन पर्यय ज्ञान और केवलज्ञान ।* जो ज्ञान पाच इन्द्रिय व मनके द्वारा सीधा पदार्थको जान सके वह मतिज्ञान mental .knowledge है। जैसे स्पर्शन इन्द्रियसे छूकर जानना कि यह चिकना पत्थर है, यह गर्म लोहा है, यह ठंडी चद्दर है। रसना इन्द्रियसे स्वाद लेकर जानना कि यह नींबू खट्टा है । यह नारंगी मीठी है। यह इमली खट्टी है । प्राण इन्द्रियसे सूंघकर जानना, कि यह गुलाब सुगंधित है, यह हवा दुर्गधमय है। चक्षुइंद्रियसे देखकर जानना कि यह आदमी गोरा है, यह काला है, यह मकान सुन्दर है, यह कपडा गन्दा है। कान इन्द्रियसे सुनकर जानना कि यह शब्द घोड़ाका है यह वृषभका है। श्रुतज्ञान (soriptural knowledge) वह है जो मतिज्ञानसे जाने हए पदार्थके सम्बन्धसे दसरे पदार्थको जाने। जैसे कानसे शब्द सुनकर उसके अर्थका ज्ञान कर लेना । जीव शब्द सुनकर
x प्रमाणनयैरधिगमः ॥६॥१॥ त. सू. * मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् ॥ ९-१ त० सू० ।