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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। पाँचवा अध्याय ।
जीव तत्व । __शिष्य-जीवतत्वके सम्बन्धमें कुछ और जरूरी बाते हों तो बताइये ।
शिक्षक-जीवोंके प्राण पाए जाते है जिनसे ये जीते थे, जीते है, व जीते रहेंगे निश्चयनयसे या मूलद्रव्यके स्वभावमे तो इस जीवका एक चेतना (consciousness) प्राण है तो कभी छूटनेवाला नहीं है। व्यवहारनयसे संसारी जीवके मूल चार प्राण पाए जाते है-इंद्रिय. बल, आयु, श्वासोश्वास जिनके द्वारा हम स्पर्श रस गंध वर्ण शब्द जान सकें उनको इद्रिय कहते है वे पाच हैस्पर्शन इंद्रिय, रसना इंद्रिय, घ्राण इंद्रिय, चक्षु इंद्रिय, कर्ण इंद्रिय ।
जिनसे हम शक्तिपूर्वक कुछ काम कर सकें उसको बल कहने है वे तीन प्रकार है-कायवल जिससे चलते, उठते, उठाते. धरते है । वचनवल जिससे जब्द निकालते या बात करते । मनवल जिससे हित अहितका ब कारण कार्यका विचार करते है। जिसके असरसे हम एक स्थूल शरीरमे बने रहते है वह आयु है। जिससे हमारे शरीरमे रक्त आदिका संचार होता है ऐसी हवाको लेना व निकालना सो श्वासोछ्वास है। इन चार प्राणों (Vitalities ) के दश भेद होजाते है। ___ संसारी जीवोंके मूल दो भेद है-स्थावर, त्रस । एक स्पर्शन इन्द्रियके द्वारा स्पर्शको जाननेवाले स्थावर होते है। वे पाच प्रकारके हे