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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा इन्द्रियें होती है जैसे-मच्छर, मक्खी, भौरा, भिंड, आदि इनके आठ प्राण होते है-चार इन्द्रिय, दो बल आयु, श्वासोझ्वाम ।
(४) पंचेन्द्रिय जीव असैनी (मन विना) जिनसे पाची इन्द्रियें होती है कान भी होते है जैसे कोई २ पानीमे उपजनेवाले साप । इनके मन बल विना नौ प्राण होत हे।
(५) पचेन्द्रिय सैनी-(मनसहित) जिसमे पाचो इन्द्रिय मन सहित होती है ऐसे जीव तिर्यच गतिमे तीन प्रकारके होने है
(१) थलचर-जैसे हिरण, गाय, भैंस बकरी, सिह, कुत्ता. बिल्ली, घोडा, हाथी, ऊंट आदि ।
(२) जलचर-जैसे मगरमच्छ. मच्छ, कच्छय, मछली आदि।
(३) नभचर जैसे कबूतर, मार, मुरगा, तोता, मैना, तीतर. काक, चील आदि ।
मनुष्य गतिमे सर्व ही मानव, नरकगतिमे सर्व नारकी. देव गतिमे सर्व देव । इन सबके दश प्राण होते है।
शिप्य-मन किसको कहते है ?
शिक्षक-एक कमलके आकार सूक्ष्म चिह्न पुगलोंका बना हुआ हृदयमे होता है इसके बलसे कारण कार्यका तर्क बुद्धि के साथ विचार किया जाता है।
शिष्य-इन प्राणाके जाननेका क्या प्रयोजन है ।।
शिक्षक-हिसा तथा अहिंसाको समझनेके लिये इनका जानना जरूरी है। आपको हम बता चुके है कि जीव स्वभावाने अविकारी है उसका मरण नहीं होता। शरीर तो जड ही है। इसीलिये प्राणोकी हिसाको हिसा कहते है। प्राणोकी रक्षाको अहिंसा या दया कहते