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जीव तत्व।
[९९ सातों प्रकारके प्राणी यातो पर्याप्त होते है या अपर्याप्त। बहुतसे पापी प्राणी जन्मते ही मर जाते है। यदि हम जगतके सर्व प्राणियोंके भिन्नर समूह करें तो चौदह होंगे। अर्थात् चौदह जगह , उनको बांटकर ढेर कर सकेंगे । इन समूहोंको जैन सिद्धातमें चौदह जीव समास (Soul classes) कहते है। क्या आप चौदह समूहोंके नाम लेसकेंगे?
शिष्य-मैं समझ गया, चौदह जीव समास इस तरह कहेंगे१-एकेन्द्रिय सूक्ष्म अपर्याप्त, २-एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्त, ३-एकेन्द्रिय बादर अपर्याप्त, ४-एकेद्रिय बादर पर्याप्त, ५-द्वेद्रिय अप
र्याप्त, ६-द्वेद्रिय पर्याप्त, ७-तेंद्रिय अपर्याप्त, ८-तेंद्रिय पर्याप्त, ९-चौंद्रिय अपर्याप्त, १०-चौद्रिय पर्याप्त, ११-पंचेद्रिय असैनी , अपर्याप्त, १२-पंचेंद्रिय असैनी पर्याप्त, १३-पंचेद्रिय सैनी अपर्याप्त, , १४-पंचेद्रियसैनी पर्याप्त ।
शिष्य-जीव तत्वके सम्बन्धमे और कोई जरूरी बात है ?
शिक्षक-जीव सब अपनी उन्नति व अवनति के लिये आप ही स्वतंत्र है। ये जीव आप ही पाप पुण्यकर्म बाधते है व आप ही उनका फल सुख दुःख भोगते है। ये स्वयं कर्ता है व स्वयं भोक्ता हैं। निश्चयनयसे ये जीव अपने शुद्ध भावोंके करनेवाले है व अपने शुद्ध आत्मीक आनन्दके भोगनेवाले हैं परन्तु कर्मसहित अवस्थामें अशुद्ध निश्चयनयसे ये जीव रागद्वेषादि भावोंके कर्ता है व मैं सुखी व मैं दुःखी इस भावके भोक्ता हैं; क्योंकि ये भाव ज्ञान शक्तिधारी जीवके ही हैं। ये भाव स्वाभाविक नहीं है, अशुद्ध हैं, इसलिये अशुद्ध निश्चयनयकी अपेक्षासे ये जीवके हैं। शुद्ध निश्चयनयसे ये जीवके